कोल इंडिया कंपनी प्रोफाइल, स्थापना, इतिहास, मालिक, नेटवर्थ, सहायक कंपनिया, जॉइंट वेंचर, विज़न, मिशन विकी और अधिक (coal india company success story in hindi)
कोल इंडिया (CIL) भारत सरकार के कोयला मंत्रालय के स्वामित्व वाला एक भारतीय केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम (CPSUs) है। यह दुनिया में सबसे बड़ी सरकारी स्वामित्व वाली कोयला उत्पादक कंपनी है। जिसका मुख्यालय कोलकाता, पश्चिमी बंगाल स्थित है।
बायो/विकी (Bio/Wiki)
नाम:- | कोल इंडिया (Coal india) |
लीगल नाम:- | कोल इंडिया लिमिटेड |
प्रकार (Type):- | केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम (CPSUs) |
इंडस्ट्री:- | माइनिंग, रिफाइनरी |
प्रोफाइल (Profile)
स्थापना की तारीख:- | 1975 |
चेयरमैन & MD:- | प्रमोद अग्रवाल |
मुख्यालय:- | कोलकाता, पश्चिम बंगाल |
स्टॉक एक्सचेंज:- | BSE: 533278 NSE: COALINDIA |
राजस्व (Revenue):- | ₹113,618 करोड़ (2022) |
कुल संपत्ति (Total Asset):- | ₹180,243 करोड़ (2022) |
नेटवर्थ:- | ₹43,143 करोड़ (2022) |
मालिक:- | कोयला मंत्रालय, भारत सरकार |
वेबसाइट:- | www.coalindia.in |
कंपनी के बारे में (About Company)
कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) भारत सरकार के कोयला मंत्रालय के स्वामित्व वाली कोयला खनन कंपनी है। यह दुनिया में सबसे बड़ा सरकारी स्वामित्व वाला सबसे बड़ा कोयला उत्पादक है। यह कंपनी भारत के आठ राज्यों में फैले 84 माइनिंग क्षेत्रों में अपनी सहायक कंपनियों के माध्यम से कार्य करती है।
अप्रैल 2011 में कोल इंडिया लिमिटेड को भारत सरकार द्वारा महारत्न का दर्जा दिया गया था। यह PSUs कुल घरेलू कोयला उत्पादन में 85% और कुल कोयला आधारित उत्पादन में 75% का योगदान देता है। कोल इंडिया कुल बिजली उत्पादन का 55% योगदान देता है और देश की प्राइमरी कमर्शियल ऊर्जा आवश्यकताओं के 40% को पूरा करता है।
इतिहास & स्थापना (History & Establishment)
भारत की स्वतंत्रता के साथ पहली पंचवर्षीय योजना में कोयला उत्पादन की अधिक आवश्यकता महसूस की गई थी। भारत में उस समय कोयला खनन मुख्य रूप से एक प्राइवेट सेक्टर का उद्यम रहा था। उसके बाद 1956 भारत सरकार ने नए कोयला क्षेत्रों की खोज और नई कोयला खदानों के विकास में तेजी लाने के कार्य के साथ 11 कोयला खदानों के साथ अपनी स्वयं की कोयला कंपनी राष्ट्रीय कोयला विकास निगम (NCDC) की स्थापना की थी।
उसी साल सिंगरेनी कोलियरी कंपनी जो 1920 से आंध्र प्रदेश में काम कर रही थी, उस कंपनी को भी सरकारी नियंत्रण में लाया गया और जिसमे केंद्र सरकार ने 45% और आंध्र प्रदेश की राज्य सरकार ने 55% शेयर हासिल किए थे।
1971 में भारत सरकार ने प्राइवेट सेक्टर में चल रहे सभी 214 कोकिंग-कोयला माइन्स और 12 कोक-ओवन का राष्ट्रीयकरण कर दिया था, जिसमें टिस्को, इस्को और DVC को उनके कैप्टिव उपयोग के लिए शामिल नहीं किया गया था। इस तरह 1 जनवरी 1972 को एक नई सरकारी कंपनी भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (BCCL) का गठन इन राष्ट्रीयकृत माइन्स और कोक-ओवन पर नियंत्रण रखने के लिए किया गया था।
30 जनवरी 1973 को प्राइवेट सेक्टर में देश की बाकी सभी 711 नॉन-कोकिंग कोयला खदानों का भी राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था। इनमें से 184 माइन्स को BCCL को सौंप दिया गया था, और बाकी 527 को एक नए खुले विभाग कोयला खान प्राधिकरण को दे दिया गया था। जून 1973 को इस विभाग को एक अलग सरकारी कंपनी CMAL में परिवर्तित कर दिया गया था।
राष्ट्रीय कोयला विकास निगम (NCDC), जिसे पहले 1957 में गठित किया गया था इसको CMAL में विलय कर दिया गया। और सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड में केंद्र सरकार की 45% हिस्सेदारी को भी CMAL को ट्रांसफर कर दिया गया था। CMAL ने अपने 4 डिवीजनों ईस्टर्न कोलफील्ड्स, वेस्टर्न कोलफील्ड्स, सेंट्रल कोलफील्ड्स और सेंट्रल माइन प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट के साथ काम करना शुरू किया था।
1973 तक सभी कोकिंग कोयला खदानें BCCL के अंतर्गत थीं, जो इस्पात और खान मंत्रालय के इस्पात विभाग के अधीन स्टील ऑथोरिटी ऑफ इंडिया (SAIL) की सहायक कंपनी के रूप में काम कर रही थी। तथा सभी गैर-कोकिंग कोयला खदानें CMAL के अधीन थीं, जो इस्पात और खान मंत्रालय के खान विभाग के अधीन थी। बेहतर नियंत्रण के लिए BCCL और CMAL दोनों को अक्टूबर 1974 को पुनः गठित ऊर्जा मंत्रालय के कोयला विभाग (अब एक स्वतंत्र मंत्रालय) के तहत लाया गया था।
नवंबर 1975 को कोयला क्षेत्र में बेहतर ऑपरेशन दक्षता को सक्षम करने के लिए एक नई सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) को शुरू किया गया था। CMAL के सभी 4 डिवीजनों को कंपनी का दर्जा दिया गया और BCCL के साथ कोल इंडिया लिमिटेड के तहत लाया गया था। सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी में CMAL की 45% स्टेक को भी कोल इंडिया को ट्रांसफर कर दिया गया था और CMAL को बंद कर दिया गया।
कोल इंडिया लिमिटेड ने 5 सहायक कंपनियों के साथ काम करना शुरू किया था। ये सहायक कंपनियां भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (BCCL), ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (ECL), सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (CCL), वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (WCL) और सेंट्रल माइन प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट लिमिटेड (CMPDIL) आदि थी। समय के साथ CIL और WCL के कुछ क्षेत्रों को अलग करके कोल इंडिया लिमिटेड के तहत 3 और कंपनियों का गठन किया गया था। ये नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (NCL), साउथ-ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (SECL) और महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड (MCL) आदि थी।
कोल इंडिया की भारत सरकार के पास 1975 से 2010 तक 100% हिस्सेदारी थी। अक्टूबर 2010 में भारत सरकार ने कोल इंडिया लिमिटेड के 10% इक्विटी शेयरों का IPO जनता के लिए ₹245 प्रति शेयर ऑफर किया था। और इस आईपीओ का इश्यू साइज लगभग 15,500 करोड़ रुपए थे।
जनवरी 2015 में भारत सरकार ने OFS के माध्यम से कोल इंडिया की 10% हिस्सेदारी बेच दी थी। इस OFS से CIL ने लगभग 22,550 करोड़ रूपए जुटाए थे।
सहायक कंपनिया & संयुक्त उद्यम (Subsidiaries & Joint Venture)
सहायक कंपनिया (Subsidiaries):-
- भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (BCCL)
- सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (CCL)
- ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (ECL)
- महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड (MCL)
- नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (NCL)
- साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (SECL)
- वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (WCL)
- सेंट्रल माइन प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट (CMPDI)
संयुक्त उद्यम (Joint Venture):-
- इंटरनेशनल कोल वेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड (ICVPL) का गठन 2009 में भारत के बाहर कोकिंग कोल संपत्तियों के अधिग्रहण के लिए किया गया था। कोल इंडिया के पास ICVPL की पैड अप कैपिटल में 2/7 हिस्सा है।
- CIL-NTPC ऊर्जा प्राइवेट लिमिटेड, CIL और NTPC के बीच 50:50 का ज्वाइंट वेंचर है, जिसका गठन अप्रैल 2010 में भारत और विदेशों में कोयला ब्लॉकों के अधिग्रहण के लिए किया गया था।
विजन & मिशन (Vision & Mission)
विजन (Vision)
प्राथमिक ऊर्जा क्षेत्र में एक वैश्विक खिलाड़ी के रूप में उभरना, खदान से बाजार तक सर्वोत्तम प्रथाओं के माध्यम से पर्यावरण और सामाजिक रूप से सतत विकास प्राप्त करके देश को ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।
मिशन (Mission)
सुरक्षा, संरक्षण और गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण के अनुकूल तरीके से कुशलतापूर्वक और आर्थिक रूप से कोयले और कोयला उत्पादों की नियोजित मात्रा का उत्पादन और विपणन करना।